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विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 43)


" डार्क प्राइम, मेराण का साथ पाकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ। मेराण डार्क प्राइम की शक्तियों को जानने के बाद उसे अंधेरे का भगवान मानने लगा था। अब तो यह तय हो चुका था बिना किसी शासक के चल रहे इस निरंकुश राज्य पर अंकुश लगाने वाला आ चुका था।

अभी, डार्क प्राइम स्वयं ही अपनी शक्तियों से अनभिज्ञ था वह नित अंधेरे को मनाने का प्रयास करता रहता था रोज नई नई योजनाएं बनाकर किसी भी तरह इस राज्य को पाना चाहता था परन्तु अब उसकी राह में असंख्य रोड़े खड़े थे, जिन्हें पार कर पाना स्वयं ईश्वर के लिए भी कठिन कार्य था। इन रोड़ो की ठोकर किसी को भी गिरा सकती थी इसलिए डार्क प्राइम अपने पक्षधर एवं अपने मत के समर्थक जुटाने लगा, इस संसार के कुछ जीव जिन्हें उजाले के आगमन से पूर्व का कुछ पता था वे डार्क प्राइम का साथ देने आगे आये क्योंकि वे अब भी उन्ही नियमों का पालन करते थे जो अंधेरे की शासन व्यवस्था द्वारा निर्धारित की गई थी। इन सब से एक साथ विचार-विमर्श करने के लिए डार्क प्राइम ने भूमि एवं वायु की शक्ति से कई पर्वताकार गुम्बद एवं कई गुप्त कक्षों का निर्माण किया। डार्क प्राइम ने स्वयं के साथ जो अन्याय हुआ उसे अच्छे से देखा और महसूस किया था वह किसी कीमत पर नही चाहता था कि उजाले के कारण अंधेरे के जीवों पर कोई बुरा प्रभाव पड़े। पर वह अब भी शासन सुव्यवस्था बनाकर रखने में विश्वास रखता था, उसके सभी साथी भी उसके विचारों से सहमत थे, ये सभी मूलतः मेराण के साथी थे।

एक दिन!

डार्क प्राइम उस विशालकाय कक्ष के एक गुप्त कक्ष में बैठा हुआ अंधेरे के देवता की पूजा कर रहा था। उस भयावह माहौल में भी उसके स्वर मधुर लग रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो जहर की पोटली के बीच किसी ने चुपके से अमृत सी मिठास घोल दी हो। जब वह बाहर आया तो मेराण और सभी साथी उसका इंतजार कर रहे थे। डार्क प्राइम ने वर्षों के बाद योद्धा का वेश धारण किया था, उसकी सुर्ख दहकती आँखे और स्याह चेहरे का आवेश बता रहा था कि अब वह इस अंधेरी दुनिया पर हुकूमत करने के लिए बिल्कुल तैयार है। परन्तु इसके विपरीत मेराण एवं उसके साथियों के प्राण सूखे हुए से नजर आ रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने कोई भयानक सपना देख लिया हो। डार्क प्राइम उनके बिना कुछ कहे ही उनकी मनोदशा भाँप गया।

"क्या हुआ मित्र?" डार्क प्राइम ने मेराण के कंधे पर अपना बाँया हाथ रखते हुए पूछा।

"अनर्थ हो गया मित्र! अनर्थ हो गया।" मेराण का चेहरा और उतर गया।

"कैसा अनर्थ?" डार्क प्राइम अपने स्वर पर और अधिक जोर देकर बोला।

"अब यह तुम्हारी पहले वाली दुनिया नही रही है डार्क प्राइम!" मेराण डार्क प्राइम से दूर हटते हुए बोला।

"क्या मतलब है तुम्हारा?" डार्क प्राइम उसकी ओर बढ़ा परन्तु उनके साथ बीच में आ गए।

"उसका मतलब है डार्क प्राइम अब कोई शासन और सुव्यवस्था लागू नही की जा सकती!" उनमे से एक दबे स्वर में बोला।

"क्या तुम्हें डार्क प्राइम की शक्तियों पर संदेह है मेराण?" डार्क प्राइम लगभग चीखते हुए बोला।

"मुझे तुम पर और तुम्हारी शक्तियों पर कोई संदेह नही है डार्क प्राइम!" मेराण धीरे से बोला। एक महाबलशाली योद्धा का इस तरह व्यवहार करना, डार्क प्राइम को किसी बड़े अपशकुन का संकेत दे रहा था।

"जो भी है मुझसे कहो! ऐसा क्या अनर्थ हो गया?" डार्क प्राइम भले ही अंधेरे का जीव था परन्तु वह इतना दबाया-कुचला गया था कि किसी के साथ कोई अन्याय सहन नही कर सकता था।

"ग्रेमाक्ष ने पुनः सिर उठा लिया है! वह अनेक योद्धाओं को मारता हुआ यहां तक पहुँचने वाला है।" मेराण चिंताजनक स्वर में बोला।

"पुनः! अर्थात एक बार तुम उससे लड़ चुके हो? पर इसमें  अनर्थ क्या है? आने दो वह भी मृत्युशैया पर ही लेटकर जाएगा।" डार्क प्राइम दहाड़ते हुए बोला।

"जानता हूँ परन्तु….!" मेराण अब भी उदास लग रहा था, उसकी आँखों में आँसू डबडबा रहे थे।

"एक महाबली की आँखों में आँसू? आँसू कमजोरों की निशानी है मेराण! यह महावीरों को को शोभा नही देती।" डार्क प्राइम, मेराण के बेवजह उदास होने से अत्यधिक क्रोधित हो रहा था।

"ये आँसू किसी के भय से नही आये डार्क प्राइम! मेराण अकेले अंधेरे के सभी महाबलियों का सामना कर सकता है परन्तु…" कहते कहते मेराण फिर रुक गया।

"परंतु क्या..?" डार्क प्राइम चीखते हुए पूछा। बाकी सभी धीर-गम्भीर बने दोनो को देखते ही जा रहे थे।

"उसने मुझसे मेरा परिवार छीन लिया, मेरे नन्हे से बेटे को मार डाला उसने!" कहते हुए मेराण फफक-फफककर रो पड़ा। कौन कह सकता है कि भला उजाले की दुनिया के उस पार भी भावनाओं का ज्वर आता होगा, उस दिन भावनाओं का ओस ज्वर आया जो डार्क प्राइम को बहा ले गया।

"कहाँ है ये ग्रेमाक्ष? मैं उसका सिर लाकर तुम्हारें कदमो में भेंट करूँगा।" डार्क प्राइम क्रोध से फटा जा रहा था, पिछली बार ऐसा तब हुआ था जब अंधेरे को दबाया गया था और फिर उसका अधिकार उससे छीना गया था, वैसे मेराण उसके लिए मात्र साथ था परन्तु कहीं न कहीं वह उससे जुड़ चुका था।

"मुझे कुछ नही चाहिए डार्क प्राइम! तुम तो कुछ भी कर सकते हो न! मुझे मेरे बेटा लौटा दो डार्क प्राइम! मुझे मेरा बेटा लौटा दो।" मेराण, डार्क प्राइम के पाँव से लिपट गया। बाकी सब चुपचाप इस दृश्य को देख रहे थे उनपर कोई विशेष प्रभाव नही पड़ा था परन्तु मेराण की ऐसी हालत देखकर डार्क प्राइम का क्रोध लावा बनकर बाहर फूटने को आ गया जिसमें अब ग्रेमाक्ष जलने वाला था।"

"मुझे ये कहानी बिल्कुल झूठी लगती है!" वीर, डार्क लीडर के गले को पकड़कर उसे लाल आँखों घूरती आँखों से देखते हुए चिल्लाया।

"तुम बिल्कुल भी नही जानते कि सच क्या है वीर!" डार्क लीडर उसे झटककर स्वयं से दूर करते हुए बोला।

"जब मेराण का बेटा मर गया था तो मैं कौन हूँ?" वीर, डार्क लीडर के सीने पर जोरदार किक करते हुए बोला, जिस कारण डार्क लीडर दूर जा गिरा।

"मुझे तो यही समझ नही आ रहा कि तुम दोनों कहानी क्यों सुना रहे हो?" कब से वहीं खड़ा सुपीरियर लीडर कन्फ्यूजन में था।

"लो सारी कहानी खत्म होने को है इनको यही नही पता कि कहानी क्यों सुनाई जा रही है!" डार्क लीडर ने उठते हुए व्यंग्य किया।

"तुम ये साबित करना चाहते हो कि अंधेरे के वास्तविक उत्तराधिकारी तुम हो? ऐसा हरगिज नही हो सकता।" वीर की आँखे अब भी दहक रही थी जबकि डार्क लीडर बिल्कुल शान्त दिखाई पड़ रहा था।

"क्या हो सकता है और क्या हुआ यह तुम नही जानते हो वीर!" डार्क लीडर के स्वर में व्यंग्य का पुट था।

"क्या उत्तराधिकारी… अब तो हम सब स्वामी ग्रेमाक्ष के सेवक है न!" सुपीरियर लीडर अब भी उलझा हुआ था।

"बड़ी गलती की मैंने तुझे फिर से शरीर दिला के।" वीर अपना सिर पकड़कर माथा पीटते हुए चिल्लाया।

"मैं किसी का सेवक नही! ये रूप और सीमाएं तो बस श्राप के कारण है।" डार्क लीडर अब भी शान्त ही नजर आ रहा था

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थोड़ी देर बाद जब विस्तार के चीखने की आवाजें शांत हुई तब ग्रेमाक्ष रुका। अब वह स्वयं को पहले से थोड़ा कमज़ोर महसूस कर रहा था। स्याह प्रकृति भी शांत हो चुकी थी, चारों ओर पूर्व के समान शांति छा गयी, ऐसा लग रहा था मानो ये दुनिया शांति की चादर ओढ़कर सो गई हो।

काफी देर तक इस स्थान पर सन्नाटा फैला हुआ था, एक असीम सी शांति। मानो किसी तूफान के आने की दस्तक दे रही हों! ग्रेमाक्ष अपने सबसे बड़े शत्रु को मारकर बहुत खुश था। सभी पर्वत नव रूप से सज संवर रहे थे। एक वीभत्सक संसार में मनमोहक दुनिया का कायाकल्प हो रहा था, अंधकार उजाले की दुनिया का नकल कर रहा था।

"हाहाहा…. नही ठहर सका विस्तार मेरे सामने!" उस सन्नाटे को चीरते हुए ग्रेमाक्ष की भयावह अट्ठहास गूंजने लगी।

"एक विशुद्ध स्याह ऊर्जा शक्तिधारक! हाहाहा…!" उसकी अट्ठहास में व्यंग्यात्मक पुट था। "काहे का विस्तार! अब दफन हो गया मेरे कदमों के नीचे! अंधेरे की दुनिया स्वागत करो तुम्हारा स्वामी आ रहा है।" चारों तरफ ग्रेमाक्ष के स्वर ही गूंज रहे थे। थोड़ी देर वह वहीं रुका फिर वहां से एक ओर आगे बढ़ गया।

क्रमशः….

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2 Comments

Shalini Sharma

02-Oct-2021 09:24 AM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

07-Sep-2021 04:09 PM

बहुत ही खूबसूरत भाग

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